27 January, 2011

बिस्मिल


मरहूम 2 की  कोई  उम्र  नहीं  होती ,
अटकी  हुई  सांस , बस  निकल  जाती  हैं , 

वोह  दुनिया  से  परे , उस  जहां  का  राही हैं ,
जहाँ  सुबह  शाम  के  बीच , कोई  लकीर  नहीं  होती 

मरहूम  की  कोई  उम्र  नहीं  होती ,

ज़ात  पूछे  भी  अगर  कोई  अश्कों 3 से ,
तोह  वोह  आहों  की  कहता  हैं ,

जो  गिरे  हैं  आखों  से ,
उन  अश्कों  की  कोई  पहचान  नहीं  होती 

मरहूम  की  कोई  उम्र  नहीं  होती ,

क्या  कुरेदोगे , ख़ाक  युहीं  ज़मीन  से ,
बाद  जाने  के,  सब  जज़्बात  बिखर  जाते  हैं ,

पुकारे  जितना  भी  कोई  प्यार  से ,
यादों  में  कभी  कोई  आवाज़  नहीं  होती 

मरहूम  की  कोई  उम्र  नहीं  होती !
 1.Bismil – Dead one/ Blessed one, 2.Marhoom – Deceased, 3. Ashq – Tears

2 comments:

daanish said...

पुकारे जितना भी कोई प्यार से ,
यादों में कभी कोई आवाज़ नहीं होती

loved
to have this version of yours

rachnaa bahut achhee hai
dil ko chhoo lene waali

still
wish to skip saying CONGRATS !!
ptaa nahi kyooN !!!

Surojit Sengupta said...

Daanish Bhai,

Aap congrats kahey na kahey, mere liye itna hi kaafi hain ke aap ney mere in chand alfazon ko apni inayat bakshi.

Main koi shayar nahi, main toh bas likhta hoon apney ehsason ko ek shakl deney ke liye. Kabhi jab phir in yaadon ki galiyon se guzroon, koi toh jana pehchana miley.

Main urdu sheekh raha hoon, waqt lagega, aur is umeed se likhta hoon, ke mere likhwat mein nikhar aaye.

Aadab

Surojit