बहुत दिनों से , कलम को मैने छुआ नहीं ,
दर्द -ए -आतिश को , सियाही में मैने डुबोया नहीं ,
दिल के तार जुडे हैं , ज़माने से मगर ,
ज़माने को अपना हाल -ए -दिल सुनाया नहीं !
बहुत दिनों से कलम को मैने छुआ नहीं ,
फुर्सत को रोते रहे , वक़्त ने तनहा छोड़ा नहीं ,
दौड़ धुप भरी ज़िन्दगी में , दो घड़ी लम्हा , जिया नहीं ,
कलम का क्या हैं , हाथ से छुटे भी अगर ,
दास्तान -ए -ज़िन्दगी किसी कलम का मोहताज तो नहीं .
बहुत दिनों से कलम को मैने छुआ नहीं .
दर्द -ए -आतिश को , सियाही में मैने डुबोया नहीं ,
दिल के तार जुडे हैं , ज़माने से मगर ,
ज़माने को अपना हाल -ए -दिल सुनाया नहीं !
बहुत दिनों से कलम को मैने छुआ नहीं ,
फुर्सत को रोते रहे , वक़्त ने तनहा छोड़ा नहीं ,
दौड़ धुप भरी ज़िन्दगी में , दो घड़ी लम्हा , जिया नहीं ,
कलम का क्या हैं , हाथ से छुटे भी अगर ,
दास्तान -ए -ज़िन्दगी किसी कलम का मोहताज तो नहीं .
बहुत दिनों से कलम को मैने छुआ नहीं .
1 comment:
Waah, lovely metaphors, amazing connections.. Love it
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