14 November, 2010

कुछ वक़्त बाद

 बहुत  दिनों  से , कलम  को  मैने  छुआ  नहीं ,
दर्द -ए -आतिश  को , सियाही  में  मैने  डुबोया  नहीं ,
दिल  के  तार  जुडे  हैं , ज़माने  से  मगर ,
ज़माने  को  अपना  हाल -ए -दिल  सुनाया  नहीं !


बहुत  दिनों  से  कलम  को  मैने  छुआ  नहीं ,


फुर्सत  को  रोते  रहे , वक़्त  ने  तनहा  छोड़ा  नहीं ,
दौड़  धुप  भरी  ज़िन्दगी  में , दो  घड़ी लम्हा , जिया  नहीं ,
कलम  का  क्या  हैं , हाथ  से  छुटे  भी  अगर ,
दास्तान -ए -ज़िन्दगी  किसी  कलम  का  मोहताज  तो  नहीं .

बहुत  दिनों  से  कलम  को  मैने  छुआ  नहीं .

1 comment:

Tanudeep said...

Waah, lovely metaphors, amazing connections.. Love it