किसी उफनते दरिया के बीच , बैठा पत्थर कोई ,
ठहरा हुआ हैं ज़िद पे अपनी , कहता न वापस आऊँगा ,
संजीदा हुआ बैठा हैं , जाने किस बात पर ,
शायद इस उम्मीद में हैं के उसे मनाये कोई ,
किसी उफनते दरिया के बीच बैठा पत्थर कोई !
तेज़ सांसें चल रही हैं , लिए सीने में चुभन कोई ,
लड़ने पे आमादा , कहता पीछे न लौट पाऊँगा ,
आधा , पानी में डूबा हैं पर ,
आधा अभी और हैं उतरना बाकी ,
शायद जिंदा रहने की हो वजह कोई ,
किसी उफनते दरिया के बीच बैठा पत्थर कोई !
घटाओं ने भेजी थी , बूंदों भरी मक्तूब कोई ,
न पढ़ा उसने , कहता न समझ पाऊँगा ,
वोह ख़त जल कर ख़ाक हुई , उसकी बे -रूखी पर ,
शायद ईस संग -दिली की हो वजह कोई ,
किसी उफनते दरिया के बीच बैठा पत्थर कोई !
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